Rann of Kutch Geopolitical Tensions: India-Pakistan Naval Overlap During Exercise Trishul – Strategic Analysis of the Sir Creek Dispute
रण ऑफ कच्छ में भू-राजनीतिक तनाव
त्रिशूल अभ्यास के दौरान भारत-पाकिस्तान नौसैनिक ओवरलैप का विश्लेषण
प्रस्तावना
दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक संरचना सदैव भारत-पाकिस्तान संबंधों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। यह एक ऐसा क्षेत्रीय समीकरण है जिसमें सुरक्षा, संप्रभुता, सीमा और सामरिक हित बार-बार टकराते हैं। रण ऑफ कच्छ और सर क्रीक का तटीय क्षेत्र इस तनाव का जीवंत प्रतीक है — एक ओर भारत का रणनीतिक आत्मविश्वास, दूसरी ओर पाकिस्तान की असुरक्षा और अविश्वास की मानसिकता।
अक्टूबर-नवंबर 2025 में आयोजित भारत का त्रि-सेवा सैन्य अभ्यास ‘त्रिशूल’, इस भूभाग को फिर चर्चा के केंद्र में ले आया। सर क्रीक के समीप अरब सागर में आयोजित इस अभ्यास के दौरान पाकिस्तान ने समानांतर रूप से एक NOTAM (Notice to Airmen) जारी किया, जिसमें हवाई क्षेत्र में प्रतिबंध लगाए गए। भारत ने इसे अपनी संप्रभुता में हस्तक्षेप के रूप में देखा। इस घटना ने एक बार फिर यह प्रश्न उठाया — क्या दक्षिण एशिया की सुरक्षा दुविधा से कोई सबक सीखा गया है, या हम फिर उसी अविश्वास की परिधि में घूम रहे हैं?
सर क्रीक विवाद का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
सर क्रीक विवाद औपनिवेशिक कालीन मानचित्रण की अस्पष्टता से जन्मा।
1914 में ब्रिटिश बॉम्बे सरकार के संकल्प में इस सीमा को “पश्चिमी मुहाने” के आधार पर परिभाषित किया गया — जो आज पाकिस्तान के दावे का आधार है। भारत, इसके विपरीत, UNCLOS (संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि) के अनुच्छेद 15 का हवाला देते हुए मध्य रेखा को उचित सीमा मानता है।
यह विवाद केवल भूमि का नहीं बल्कि समुद्री संसाधनों और विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) का भी है, जहाँ अरबों डॉलर मूल्य के तेल, गैस और मत्स्य संसाधन हैं। 1965 और 1971 के युद्धों के बाद यह मुद्दा बार-बार वार्ताओं में आया — विशेषकर 2007 के संयुक्त सर्वेक्षण के दौरान — लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया।
अभ्यास ‘त्रिशूल’: भारत का सामरिक संदेश
भारत द्वारा 30 अक्टूबर 2025 को शुरू किया गया त्रिशूल अभ्यास तीनों सेनाओं — थल, जल और वायु — का संयुक्त प्रशिक्षण अभियान है। इसका उद्देश्य उभयचर (amphibious) अभियानों, समुद्री समन्वय और आतंकवाद-रोधी अभियानों में तालमेल को बढ़ाना है।
INS विक्रांत, राफेल लड़ाकू विमान और उन्नत एंटी-सबमरीन सिस्टम जैसे संसाधनों की भागीदारी यह संकेत देती है कि भारत अपनी हिंद-प्रशांत सुरक्षा रणनीति के अनुरूप सीमावर्ती समुद्री क्षेत्रों में परिचालन तत्परता बनाए रखना चाहता है। यह अभ्यास भारत के "सक्रिय रक्षा" सिद्धांत (Active Defence Doctrine, 2018) पर आधारित है, जो संभावित खतरों को सीमाओं के भीतर आने से पहले ही निष्प्रभावी करने पर जोर देता है।
भारत के लिए यह अभ्यास अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में एक वैध और निवारक अभ्यास है — लेकिन पाकिस्तान इसे आक्रामक मंशा के रूप में देखता है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और सुरक्षा दुविधा
पाकिस्तान ने त्रिशूल के प्रारंभ के साथ ही 30 अक्टूबर को एक NOTAM जारी किया, जिसमें सर क्रीक के समीप हवाई क्षेत्र को "सुरक्षा कारणों" से प्रतिबंधित घोषित किया गया। भारत ने इसे भू-संप्रभुता में अनुचित हस्तक्षेप बताया, क्योंकि यह क्षेत्र भारत के नियंत्रणाधीन EEZ के करीब आता है।
यथार्थवादी दृष्टिकोण से (केनेथ वॉल्ट्ज, Theory of International Politics, 1979), यह घटना Security Dilemma यानी सुरक्षा दुविधा का उदाहरण है — जब एक देश अपनी रक्षा को मजबूत करता है, तो दूसरा देश इसे हमले की तैयारी समझ लेता है।
यह प्रतिक्रिया पाकिस्तान की असमान शक्ति स्थिति (asymmetric power equation) को भी दर्शाती है। 2025 के SIPRI आंकड़ों के अनुसार भारत का रक्षा बजट ($81 बिलियन) पाकिस्तान ($8 बिलियन) से लगभग दस गुना है। इस असमानता के बीच पाकिस्तान अपनी घरेलू राजनीतिक अस्थिरता, आतंकवाद, और आर्थिक संकट से जूझ रहा है — ऐसे में "भारतीय खतरे" की कहानी उसके लिए आंतरिक एकजुटता का माध्यम बन जाती है।
रणनीतिक और क्षेत्रीय प्रभाव
रण ऑफ कच्छ और सर क्रीक केवल भारत-पाक विवाद नहीं हैं — ये हिंद-प्रशांत क्षेत्र की शक्ति-संतुलन राजनीति के भी संकेतक हैं।
भारत का यह अभ्यास चीन के "String of Pearls" को चुनौती देने वाली उसकी सागरमाला रणनीति के अनुरूप है। वहीं पाकिस्तान के लिए यह क्षेत्र चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का संवेदनशील छोर है।
इसलिए, भारत का कोई भी समुद्री अभ्यास इस्लामाबाद के लिए केवल सुरक्षा चिंता नहीं बल्कि आर्थिक गलियारे की सुरक्षा का प्रश्न बन जाता है।
दूसरी ओर, हवाई क्षेत्र में इस तरह का ओवरलैप आकस्मिक झड़प की आशंका बढ़ा देता है — जैसा कि RAND Corporation के एक 2022 सिमुलेशन ने 20% संभावना के साथ मॉडल किया था कि ऐसी स्थिति सीमित सैन्य झड़प में बदल सकती है।
कूटनीतिक और नीतिगत सिफारिशें
- डी-एस्केलेशन तंत्र की पुनः सक्रियता – कारगिल युद्ध के बाद स्थापित सैन्य हॉटलाइन को इस प्रकार की घटनाओं के लिए तत्काल सक्रिय करना आवश्यक है।
- SCO या UN चैनलों के माध्यम से मध्यस्थता – सर क्रीक विवाद को द्विपक्षीय राष्ट्रवाद से हटाकर बहुपक्षीय कानून व्यवस्था के दायरे में लाना चाहिए।
- अभ्यास पारदर्शिता (Exercise Transparency) – भारत को अपने सैन्य अभ्यासों की सूचना पूर्व में साझा करने और अंतरराष्ट्रीय समुद्री मानदंडों का पालन जारी रखना चाहिए।
- NOTAM संयम – पाकिस्तान को ऐसे प्रतिबंधित नोटिसों का दुरुपयोग बंद करना चाहिए ताकि अनावश्यक उकसावे से बचा जा सके।
- UNCLOS आधारित समाधान – संयुक्त सर्वेक्षण या मध्यस्थता के माध्यम से सर क्रीक को स्थायी रूप से सीमांकित करना दोनों देशों के आर्थिक हित में होगा।
निष्कर्ष
त्रिशूल अभ्यास और पाकिस्तान का NOTAM विवाद दक्षिण एशिया की वही पुरानी कहानी दोहराते हैं — जहाँ एक पक्ष की सुरक्षा नीति दूसरे के लिए खतरे की धारणा बन जाती है।
भारत का रुख रक्षा-केंद्रित है, जबकि पाकिस्तान की प्रतिक्रिया उसकी ऐतिहासिक असुरक्षाओं से प्रेरित है।
जॉन मियर्शाइमर (The Tragedy of Great Power Politics, 2001) के शब्दों में — "नियंत्रणहीन प्रतिद्वंद्विता अंततः त्रासदी बन जाती है"।
इसलिए दक्षिण एशिया के लिए स्थायी शांति का मार्ग केवल निवारण नहीं बल्कि संवाद और संरचित संलग्नता (Structured Engagement) से ही संभव है।
यदि सर क्रीक जैसे विवादों को सुलझाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई जाए, तो यह क्षेत्र न केवल संघर्ष से मुक्ति पा सकता है बल्कि हिंद-प्रशांत स्थिरता का आदर्श मॉडल भी बन सकता है।
संदर्भ
- Waltz, K. N. (1979). Theory of International Politics. Addison-Wesley.
- Wendt, A. (1992). “Anarchy is What States Make of It.” International Organization, 46(2).
- Joint Doctrine Indian Armed Forces. (2018). HQ IDS, New Delhi.
- SIPRI Military Expenditure Database. (2025). Stockholm International Peace Research Institute.
- UNCLOS. (1982). United Nations Convention on the Law of the Sea.
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